Amrit Vele Da Hukamnama Gurudwara Baba Zorawar Singh Ji Baba Fateh Singh Ji – 3-6-25

धनासरी महला ५ ॥
अउखी घड़ी न देखण देई अपना बिरदु समाले ॥ हाथ देइ राखै अपने कउ सासि सासि प्रतिपाले ॥१॥ प्रभ सिउ लागि रहिओ मेरा चीतु ॥ आदि अंति प्रभु सदा सहाई धंनु हमारा मीतु ॥ रहाउ ॥ मनि बिलास भए साहिब के अचरज देखि बडाई ॥ हरि सिमरि सिमरि आनद करि नानक प्रभि पूरन पैज रखाई ॥२॥१५॥४६॥ {पन्ना 682}

अर्थ: हे भाई! मेरा मन (भी) उस प्रभू से जुड़ा रहता है, जो आरम्भ से आखिर तक सदा ही मददगार बना रहता है। हमारा वह मित्र प्रभू धन्य है (उसकी सदा तारीफ करनी चाहिए)। रहाउ।

हे भाई! (वह प्रभू अपने सेवक को) कोई दुख देने वाला समय नहीं देता, वह अपना प्यार वाला बिरद स्वभाव सदा याद रखता है। प्रभू अपना हाथ दे के अपने सेवक की रक्षा करता है, (सेवक को उसके) हरेक सांस के साथ पालता रहता है।1।

हे भाई! मालिक प्रभू के हैरान करने वाले करिश्मे देख के, उसका बड़प्पन देख के (सेवक के) मन में (भी) खुशियां बनी रहती हैं। हे नानक! तू भी परमात्मा का नाम सिमर-सिमर के आत्मिक आनंद ले। (जिस भी मनुष्य ने सिमरन किया) प्रभू ने पूरे तौर पर उसकी इज्जत रख ली।2।15।46।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may also like these

Discover more from

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading